Saturday 28 March 2015

कुछ तुम को...

कुछ तुम को सच से नफरत थी,
कुछ हम से न बोले झूट गए,

कुछ लोगों ने उकसाया तुम्हें,
कुछ अपने मुक़द्दर फूट गए,

कुछ खुद इतने चालाक न थे,
कुछ लोग भी हम को लूट गए,

कुछ उम्मीद भी हद से ज्यादा थे,
की मेरे ख्वाब ही सारे टूट गए....

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Tuesday 17 March 2015

तुम नफरतों...

तुम नफरतों के धरने,
क़यामत तक ज़ारी रखो।
मैं मोहब्बत से इस्तीफ़ा,
मरते दम तक नहीं दूंगी।
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Thursday 12 March 2015

हम मेहमान....

हम मेहमान नहीं,,, रौनक-ऐ-महफ़िल हैं..., मुद्दतों याद रखोगे के 
जिंदगी में कोई आयी थी...!!! 

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Wednesday 11 March 2015

मैं क़तरा क़तरा.....

मैं क़तरा क़तरा फ़ना हुयी ,, 
मे ज़र्रा ज़र्रा बिखर गयी ,,
ऐ ज़िन्दग़ी तुझसे मिलते मिलते ,,
मैं अपने आप से बिछड़ गयी ,,
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